शनिवार, 3 अक्तूबर 2015 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

मैं हिन्दू हूँ वो मुसलमां है....

मैं हिन्दू हूँ वो मुसलमां है
ज़माना रोज़ कहता हैं ।
मगर इंसान है दोनों।
मैं भी समझता हूँ
वो भी समझता है।

मगर ये दूरियां बनाने की
कोशिशें कौन करता है।
है ईमान खतरे में ये कान
कौन भरता है।।
ये मैं भी समझता हूँ
और वो भी समझता है।।

नही जब भेद है दिल में
तो बाहर चौकसी कैसी ।
कहीं आपा 'रानी' है कहीं
'रजिया 'बनी मौसी ।
इन रिश्तों  को कहीं कोई
क्यों
नापाक कहता है।।
ये मैं भी समझता हूँ....!

वो अम्मी बुलाता है मैं
अम्मा बुलाता हूँ।
है एक ही मतलब
जो रोज दुहराता हूँ ।
इन पाक लफ़्ज़ों पर
ज़माना क्या कहता है।
मैं भी समझता हूँ
.........!

हम इस बेरुखी में
ज्यादा जी नहीं सकते।
किसी की साज़िशों
में अब पिस नहीं सकते।
इन नफरतों के पर्दों में
कौन रहता है।
ये मैं भी समझ.......।।

कमलेश" इस देश में ये
दस्तूर चलता है।
गले मिलकर  मुहब्बत् से
नफरतों से दूर चलता है ।
ये प्रेम सद्भाव का मौसम
किसको खलता है।
मैं भी समझता हूँ।
वो भी समझता है।।

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 ने कहा…

सुंदर रचना